रविवार, 21 सितंबर 2008

और भी ग़म है ज़माने में बम के सिवा!

दिल्ली का दिल हिला मगर बिहार में कोसी का कहर अभी भुगतना है और "विस्फोटकों की पोशाक" पहना वो बच्चा शायद अब भी गुब्बारे बेच रहा है.

चक्रधर जी का 17 सितम्बर वाला पोस्ट आँखें खोलता है! तीन बार सूट बदलने वाले को अपनी किस्मत सौपने और फिर उस पर दुखी होने के बजाय शयद हम कुछ सकारात्मक कर सकते हैं. कम से कम सोच तो सकते ही हैं.

रविवार, 7 सितंबर 2008

माफ़ी-नामा

कोशिश कर रहा हूँ
ऊँचा उठने की
इतना
की तुम्हें माफ़ी मांगनी पड़े
बहुत पहले माफ़ी न मांगने की
इस बीच
मिलना, मिल के हँसना, हाल-चाल पूछना
चलता रहेगा
मगर तुम्हारे नव-रत्नों में शामिल नहीं होऊंगा
शायद
माफ़ी मांगने के बाद भी

इस विचार के लिए
माफ़ी मांगता हूँ
ख़ुद से