गुरुवार, 29 जनवरी 2009

अगर अभी गया...

वो आदमी
जिसके पास
औसत से ज्यादा शब्द
कम समझदारी
हर दम चोट खाने का भय था
और
जो इस भय की प्रतिक्रिया
तीसरी और चौथी पंक्ति को मिला कर
कर दिया करता था!
कहना
आया था, चला गया!

दूसरी नौकरी की ओर...

पहली नौकरी ने मुझे क्या दिया!
ढेर सारा आत्म-विश्वास
बाज़ार में भूखा नहीं मरूँगा
एक नामी मालिक का टैग
ऊँची कीमत पर कैश किया जा सकता है
ढाई हज़ार की लिवाइस की जींस
पाँच हज़ार का वुडलेंड का जूता
इतना नर्म के अपनी ही खाल लगता है
गोवा की छुट्ठियां
माँ-बाप का भरोसा, यारों में इज्ज़त
आराम का काम
अब कह रहा है-
सफर में रुकने के दिन ये नहीं हैं
और सुनों
गर्द, पसीना जब चीकट बन जाए
प्यार से ख़ुद को धोना