गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

स्त्री-प्रश्न, भाग-१

स्त्री-प्रश्न -
१) समाज में ऐसा कुछ अन्तर्निहित है जो स्त्री-पुरूष में भेदभाव करता है. ये अन्तर लंबे समय से उपस्थित है और संस्थागत/व्यवस्थागत हो चुकने के कारण भविष्य में भी बना रह सकता है. इस अन्तर को समझना, मुख्यत: उस रूप में जिसमे नारी एक दोयम दर्जे का नागरिक जीवन जीती है, अत्यावश्यक है. बदलते सामजिक/आर्थिक/राजनीतिक परिवेश में इसे समझना एक स्थूल दिशा निर्देश है.
२) किसी भी मुद्दे की तरह, स्त्री-प्रश्न को सोचने समझने में कुछ ज़ाहिर बातें आड़े आ सकती हैं और हमारे दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकती हैं. ये देखना दिलचस्प होगा की इन लैंगिक, सामजिक, आर्थिक, राष्ट्रीय आदि मोडों से होते हुए स्त्री-प्रश्न पर तार्किक रूप से कैसे सोचा जा सकता है.

चर्चा जारी रहेगी...

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