तो साहिब जब हम चण्डी मंदिर पहुंचे तो मुनीश भाई से हुई एक दिन पहले की बात दिमाग में कौंधी और मैंने अपने बड़े भाई को कह दिया की "भाई गाडी धीमी कर लो. यहाँ से पूछना है की ऋषिकेश के लिए राजाजी नेशनल पार्क वाला रास्ता कहाँ से लेना है."
आगे देखा की पहाड़ पर से पत्थर गिर रहे थे(छोटे ही सही) और थोडा गर्दो-गुबार टाइप माहौल हो गया था-
जैसा की गुरु घुमक्कड़ ने कह दिया था की नहर के साथ चलो तो "सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं" टाइप का समां हो जायेगा होगा. तो हमने वो किया मगर उससे पहले 100 रूपए नेशनल पार्क वालों ने सूत लिए. "उन्हें भी अपने हाथी पालने है."
मन बन चुका था की पानी पर राफ्टिंग जरूर होगी. शिवपुरी से ऋषिकेश-
फिर निकले सहस्र धारा के लिए, पहुंचे लच्छी वाला-
पानी के पंख... मुनीश भाई को एक बार फिर धन्यवाद!
सोमवार, 4 मई 2009
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10 टिप्पणियां:
शुक्रिया उस को को जिसने ये जहाँ बनाया . खूब मौज लेनी चाहिए इसी तरह . अपना ब्लॉग लिंक करो ब्लोग्वानी से .
keep it up! i have added your link in my list of fav. blogs !
शुक्रिया मुनीश भाई! ब्लोगवाणी पर कैसे आऊं समझ नहीं आ रहा. फिर से उन्हें मेल की है. लेट्स सी!
blog ki duniyaan main swagat hai.
main kabhi hrisikesh nahi gayi hoon,lekin tasviren bahut hi behtar hai.blogvani main aapka swagat hai....aasha hai ki aage bhi aap ke blog main aati rahoongi.
विनय जी, ऋषिकेश के लिए जंगल वाला रास्ता तो अब आपको मालूम पड़ ही गया है. चंडी देवी के नीचे से जाता है. जंगल वाले बेवकूफ बनाते हैं, हम इस जंगल में पूरे पूरे दिन फिरते रहते थे कि कहीं कोई हाथी या तेंदुआ ही दिख जाये, लेकिन कभी कोई नहीं दिखा. हाँ, एक बार हाथी का गोबर जरूर दिखा था- बिलकुल ताजा.
और लच्छीवाला, बड़ा ही मस्त पिकनिक स्पॉट है. शायद आप नदी की विपरीत दिशा में नहीं गए. आधेक किलोमीटर आगे जाकर काफी बड़ा खुला मैदान है, इसमें आमतौर से पर्यटक नहीं जाते, बस पानी में कूद-कादकर ही वापस चले जाते हैं.
@tarachand शर्मा, neha : बहुत शुक्रिया!
@मुसाफिर जाट भाई:
हमें नेशनल पार्क वालों द्वारा बांधे गए कुछ हाथी ज़रूर दिखे थे.
आप मेरी इस लघु सी शंका का समाधान ज़रूर करें की ये लच्छीवाला में जो पानी का झरना सा है, क्या वो नदी है ? मेरा भी मन था की जहाँ से ये धारा आ रही है, उसके बारे में जरा खोजबीन करुँ, मगर बंदरों की एक पूरी जमात रास्ते में टिकी हुई थी.
लच्छीवाला मस्त तो है, मगर इस मस्ती में खलल डालने वाले भी कम नहीं हैं. कुछ टुच्चे टुन्न होते हुए हुए पानी में गोते लगा और गाली-ग़लोच कर अपना मन बहला रहे थे. आखिर पीने-पिलाने का भी कुछ अदब होता है!
हमने निकलते हुए चौकीदार से शिकायत की तो थी...
हाँ विनय जी,
लच्छीवाला में जो धारा है वो एक नदी ही है, नाम मुझे अभी ध्यान नहीं है. एक बात और बता दूं, सहस्त्रधारा में जो नदी है, ये वही है. सहस्त्रधारा में तो पहाडों से झरना बनाती है, यहाँ थोडा मैदान में बहती है. और हाँ, आप अपना फोन नं. दे दें. दो मत, बल्कि मिसकॉल मार दो. मेरा नं. है- 9999399632
thanx aapne cartoonon per gaur diya
response sahi raha bloglist ke link ka !kyon?
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