आगे देखा की पहाड़ पर से पत्थर गिर रहे थे(छोटे ही सही) और थोडा गर्दो-गुबार टाइप माहौल हो गया था-
जैसा की गुरु घुमक्कड़ ने कह दिया था की नहर के साथ चलो तो "सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं" टाइप का समां हो जायेगा होगा. तो हमने वो किया मगर उससे पहले 100 रूपए नेशनल पार्क वालों ने सूत लिए. "उन्हें भी अपने हाथी पालने है."
मन बन चुका था की पानी पर राफ्टिंग जरूर होगी. शिवपुरी से ऋषिकेश-
फिर निकले सहस्र धारा के लिए, पहुंचे लच्छी वाला-
पानी के पंख... मुनीश भाई को एक बार फिर धन्यवाद!