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अपनी ढपली
और राग होंगे- तेरे-मेरे, इसके-उसके, यहाँ-वहाँ के!
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मैं कौन हूँ और तुम क्या हो, इसमे क्या है धरा सुनो| धरती-गगन रहे चिर-चुम्बित, मेरे क्षितिज उदार बनो||
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