सफर शुरू होता हैं सोलन से। हमारा स्वागत करने आ पहुंचे एक झक्कास मुकुट पहिने चचा सूरज! कसम से! क्या लग रेले हैं-


सोयाबीन, अखरोट और खसखस को आटे में भर कर भाप में पकाया गया हैं. परोसते हुए, गरमागरम सिडडु को काट कर ऊपर से देसी घी डाला जाता है। हरी चटनी के साथ परोसा गया सिडडु लज़ीज़ है- कम मसालों के साथ।

और साथ साथ मज़ा उठाया जा रहा है प्रकृति के शबाब का।
हल्की बूंदा-बंदी ने है पारभासी हिजाब उढा दिया है पहाडों
कोफिर बुतों पर नज़र कब तक टिके ( वैसे शिमला
के मॉल रोड पर शनिवार पर धूप उस तरह भी खूब चुराई गई)।
नीचे वाले फोटो में जीभ
यूँ ही बाहर आ गई है

अपन राज विला के बगीचे में घूम रहे थे, और ये सोच
रहे थे की लगे हाथों - अन्दर भी हो ही आयें| तभी घर
के रखवालों ने, जो अब तक दरो-दीवार के अन्दर ही
थे, जैसे वहीं से हमारे ख्यालों को भांप लिया| अल्लाह
के उन नेक बन्दों ने बाहर निकलकर समझाया की राज
विला के खूंखार कुत्ते हम जैसे कम-अक्लों लिए ही दो
दिन से उपवास पे हैं| अपन ने डिजिकैम से उनकी
तस्वीर खेंच ज़रा चमकाने की कोशिश की मगर ढाक
के तीन पात (तस्वीर रखवालों की, कुत्तों की नही)-
ये पता ज़रूर लगा की प्यारे के. एस. गर्मियों की शुरुआत(मार्च-अप्रैल) या बरसात(अगस्त-सितम्बर) में ही वहाँ आते हैं|
किसिम-किसिम के पेड़-पोधों को सींच रहीं हैं और
जहाँ की आबो-हवा को शीशीओं में भर दुनिया की
सबसे महंगी खुशबू से ज़्यादा कीमत पर बेंच सकते
हैं| यहाँ गन्दगी न फैलाने का "feel good" कराने
के लिए हैं ऐसे कूड़े-दान-

और फिर भी अगर आपको कूड़ा फेलाने की खाज हो तो-
मैंने जितना लिखा वो इन जगहों को शब्दों में उतारने लायक तो बिल्कुल नहीं ही था| फ़िर भी ये खाकसार उम्मीद में बैठा हैं के आप उस तरफ़ निकलें तो अपने नूतन अनुभवों को यहाँ जरूर बाटें या जहाँ बाटें वहाँ का पता ज़रूर दे| अपन लपक लेंगे| और हाँ! धरमपुर के पास(कसौली से सोलन के बीच में), ज्ञानी दे ढाबे के सामने "colonel's kebabs" हैं| वहाँ मलाई-टिक्का और पनीर से भरे मशरूम खूब चटखारे लेकर उडाएं गए हैं|
अगली पोस्ट में अपना एक पुराना गीत पेला जायेगा। तब तक! लगे रहें :)
1 टिप्पणी:
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