मंगलवार, 14 जुलाई 2009

सस्ती मौत गरीब की

पहली


(फ़ोटो http://news.in.msn.com/national/article.aspx?cp-documentid=३०७०९९६ से साभार.)

"जेब में पैसे हैं नहीं दारु पियेंगे. और वो भी जब बेन किया हुआ है वहां. और पी लो छुप-छुप के कच्ची सस्ती देसी दारू. 10 रूपए में अच्छी दारु की बूँद भी ना मिले."
"यार वो महंगी अफ्फोर्ड नहीं कर सकते थे."
"अबे तो ये साले अमीरों वालें शौक क्यूँ पालते हैं. इतने का दूध पी लो! सेहत भी बनेगी! "
"जैसे के बियर की जगह तू पी लेता है."
"यार हम लोगों की बात अलग है. इन सब चीज़ों में निगरानी की बड़ी दरकार होती है. मैंने एक बार मजे-मजे में कच्ची ट्राई करने की सोची थी. अब कान पकड़ता हूँ. मगर ये गरीब आई टेल यू!दे आर सो डम्ब! मर गये न थोक में!"


दूसरी


(फ़ोटो http://www.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2009/07/12/090712071647_1metro_466.jpg से साभार)

"क्या इस वर्ल्डक्लास प्रोजेक्ट के पूरा होने में कुछ वर्ल्डक्लास संवेदनशीलता नहीं दिखाई जानी चाहिए."
"दिखाई तो थी यार. फिर मरने वालों और घायलों को पैसा भी दिया जाएगा."
" इतना काफी नहीं है. किसी की तो आपराधिक नज़रंदाजी है. आरोप तय होने चाहिए."
"अबे मजदूरों के लिए इत्ता हो गया, यही काफी है. और क्या जान लेगा सरकार की/समाज की/अपनी/मेरी!

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

इन्द्रधनुषी ज़िन्दगी

एक मुट्ठी ज़िन्दगी
आसमां में उछाल दी...



मिला
इन्द्रधनुष!