सोमवार, 13 अप्रैल 2009

वयस्कों के लिए

मैं: और बेटे मौज चल रही है...

दोस्त: हा यार, वही काम वगैरह!

मैं: काम का तो पता नहीं मगर तुम्हारे "वगैरह" के चर्चे हर जुबान पर है...

दोस्त: हा हा हा...

मैं: हा हा हा...

दोस्त: बड़ा कमीना है तू यार...

मैं: बड़े तो आप हैं सर. मैं तो... और बता वो जो मंटो की किताब खरीदवाई थी, पढ़ी?

दोस्त: नहीं यार टाइम कहाँ मिल पा रहा है...

मैं: उसमे एक "ऊपर, नीचे और दरमियाँ" ...

दोस्त: कभी कभी लगता है की आई नीड सम स्पेस

मैं: क्या बात कर रहा है!
(मैं फोन पर मुस्करा रहा था, मगर दोस्त को कमीनेपन की गहरी समझ है)

दोस्त: मज़ाक नहीं कर रहा यार. इट्स आलमोस्ट लिव इन... शुक्रवार को साथ ही आ जाती है ऑफिस से, और पूरा वीकएंड साथ ही... अकेले होते ही उसका हाथ पेंट की ज़िप पर चला जाता है.., राशिद (दोस्त का फ्लैटमेट) कहता है की जब तक मेरे कमरे का दरवाजा बंद नहीं होता उसे नींद नहीं आती...

मैं: सही जोड़ी बनी है भाई ठरकी को ठरकी मिली... या फिर ठर्कन... राइम्स विद धड़कन...हा हा हा... सही है गुरु!

दोस्त: यार कभी कभी मूड खराब कर देती है... मगर मैंने साफ़ कर दिया है की मैं इस रिलेशनशिप को लेकर बिलकुल सीरियस नहीं हूँ.

मैं: यार थोड़ा सा तो दिल मैं कुछ जरूर होगा... मतलब थोड़ा सा... थोड़ा सा...

दोस्त: यार, आई कांट अलाऊ माईसेल्फ तो गेट सीरियस... कोई मुकम्मल मुस्तकबिल नहीं इस रिश्ते का...

मैं: भाई रुक जा. मैं ज़रा मद्दाह की डिकशनरी उठा लाऊं.

दोस्त: यार तू ऐसी बाते करेगा तो हम जैसे अनपढों का क्या होगा...

मैं: ले ले मजे यार... ये छोडिये आप रिश्ते के फलसफे पर रोशनी डाल रहे थे...

दोस्त: यार कुछ प्रोस्पेक्ट नहीं इस लड़की का... २ लाख का पैकेज है साल का और जो प्रोफाइल है उसमें करियर प्रोग्रेस है ही नहीं...

मैं: कह दे के ये झूठ है! मेरा दोस्त इतना अनरोमेंटिक नहीं हो सकता! प्यार मैं पैसा कहाँ से आ गया.

दोस्त: मेरे भी कुछ सपने है हैं यार!

मैं: हाँ बेटे! एंजेलिना जोली मिलेगी तुझे! रिच एंड ब्यूटीफुल...

दोस्त: क्यों नहीं मिल सकती बे!
मैं यहाँ थोड़ा झेंप गया हूँ. मुझे किसी की भावनाओं का मज़ाक नहीं उडाना चाहिए)

मैं: हां यार क्यों नहीं मिल सकती.

दोस्त: वो दूसरी बात है की वो कुछ ज्यादा ही घिसी हुई लगती है. नोट द वन विच केन बी टेकन होम टू मीट पेरेंट्स.

मैं: आपका मोनिका बलूची के बारे मैं क्या ख्याल है. क्लासिक ब्यूटी. अभी हाल ही में उसे...
दोस्त: हाँ हाँ... बेस्ट लिप्स... इन्तहाई खूबसूरत और मेरे सपने में निरंतर आने वाली मोनिका का नित्य प्रायः स्मरण करता हूँ.(हम दोनों ठहाका मार के हंसते हैं) और उस में वो बात है की आराम से मां के सामने ले जाया जा सकता है...

मैं:मगर यार इस लड़की के साथ रिश्ते में शरीर के अलावा कुछ तो होगा...

दोस्त: वो तो लाजिमी है. पत्थर साथ हो तो उससे भी लगाव हो जाता है. वैसे मुझे उस की गोद में लेटना बहुत पसंद है. और क्या मसाज करती है वो सर की... मगर नहीं यार... वो समझती है... कल कह रही थी की शी इज़ हैप्पी टु बी ओनली फिजिकल विद मी

मैं: ह्म्म्म
दोस्त: ह्म्म्म

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

अंडें-1

सौरभ को गाँव कभी पसंद नहीं आता. छुट्टियों में गाँव आना तो और भी बोरिंग है. कुछ है भी यहाँ करने को. शहर में पूरे दिन बिजली आती है. जब मन चाहे टीवी देखो जब मन चाहे कॉमिक्स या कहानियों की किताब पढो. थोडा बहुत क्रिकेट और बाकी समय में दोस्तों के साथ मोनोपोली या डबल्यू . डबल्यू. एफ़. के प्लेयिंग कार्ड्स. छुट्टियों का होमवर्क भी करने का वक़्त मिल जाता है. दिन आराम से गुजरता है. और यहाँ, इस गाँव में तो लगता है बस मच्छर-मक्खी ही खुश रह सकते हैं. वहीँ तो हैं हर तरफ़. न बैठने दें न सोने दें. खाना खाते वक़्त मम्मी पंखा न झलें और अगर रात को मच्छर दानी न लगे तो सौरभ दो दिन में ही बीमार हो जाए. वैसे बीमार होना बुरा भी नहीं है! इस वजह से शहर लौटा जा सकता है!

"बड़े भैया की मौज है! ताऊ जी का लड़का जो उनका हमउम्र है. दोनों पूरे दिन झोट्टा-बुग्गी ( भैंसे को बग्गी में जोड़ कर बनाई गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचलित) को दौड़ाते फिरते हैं. बड़े भैया तो उसे भगाने के लिए कैसी कैसी गाली देते हैं! पापा के आते ही उनकी शिकायत करूंगा. कभी झोट्टे को इतनी तेज़ सांटा (लकड़ी पर लपेटा गया चमडे का चाबुक) मारते हैं और कभी उस के पेट के नीचे लात. बेचारा झोट्टा! उसे दर्द नहीं होता होगा क्या!"

अपने हमउम्र किसी बच्चे से सौरभ की जान-पहचान नहीं है. दादा जी कहते हैं, "पूरे गाँव में ब्राहमणों के गिने चुने घर हैं, और उस में भी हमारी बोंत (आर्थिक स्तर) वाला कोई नहीं हैं. गंदे-संदे लत्ते(कपड़े) और उस से भी गन्दी आदतों वाले बच्चे. और खेलेगा भी क्या! कंचे, गुल्ली-डंडा? पापा मना करते हैं न इन खेलों के लिए. पढ़े लिखे शहरी लाट साहेब क्या ऐसे खेल खेलते हैं. तू घर में ही भाईओं-बहनों के साथ खेला कर."

पापा आयेंगे तो सौरभ अकेले पूरे दिन उनके साथ क्रिकेट खेलेगा.

आज पापा आयेंगे. सौरभ सुबह से ही खुश है. उस ने खुद ही बड़े भैय्या और ताऊ जी के लडके से कहा है की उसे भी खेत पर जाना है. उस पापा को बताना है की उसने गाँव में क्या-क्या देखा और फिर उनसे सवाल भी पूछने हैं. दोनों बड़े भाई उसे टालना चाहते हैं, "बेमतलब में में हमारे कामों में अड़ंगे करेगा." मगर सौरभ को जाना है तो जाना है.