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अपनी ढपली

और राग होंगे- तेरे-मेरे, इसके-उसके, यहाँ-वहाँ के!

रविवार, 30 अगस्त 2015

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प्रस्तुतकर्ता विनय (Viney) पर 10:58 pm कोई टिप्पणी नहीं:
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विनय (Viney)
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मैं कौन हूँ और तुम क्या हो, इसमे क्या है धरा सुनो| धरती-गगन रहे चिर-चुम्बित, मेरे क्षितिज उदार बनो||
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