पहली
(फ़ोटो http://news.in.msn.com/national/article.aspx?cp-documentid=३०७०९९६ से साभार.)
"जेब में पैसे हैं नहीं दारु पियेंगे. और वो भी जब बेन किया हुआ है वहां. और पी लो छुप-छुप के कच्ची सस्ती देसी दारू. 10 रूपए में अच्छी दारु की बूँद भी ना मिले."
"यार वो महंगी अफ्फोर्ड नहीं कर सकते थे."
"अबे तो ये साले अमीरों वालें शौक क्यूँ पालते हैं. इतने का दूध पी लो! सेहत भी बनेगी! "
"जैसे के बियर की जगह तू पी लेता है."
"यार हम लोगों की बात अलग है. इन सब चीज़ों में निगरानी की बड़ी दरकार होती है. मैंने एक बार मजे-मजे में कच्ची ट्राई करने की सोची थी. अब कान पकड़ता हूँ. मगर ये गरीब आई टेल यू!दे आर सो डम्ब! मर गये न थोक में!"
दूसरी
(फ़ोटो http://www.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2009/07/12/090712071647_1metro_466.jpg से साभार)
"क्या इस वर्ल्डक्लास प्रोजेक्ट के पूरा होने में कुछ वर्ल्डक्लास संवेदनशीलता नहीं दिखाई जानी चाहिए."
"दिखाई तो थी यार. फिर मरने वालों और घायलों को पैसा भी दिया जाएगा."
" इतना काफी नहीं है. किसी की तो आपराधिक नज़रंदाजी है. आरोप तय होने चाहिए."
"अबे मजदूरों के लिए इत्ता हो गया, यही काफी है. और क्या जान लेगा सरकार की/समाज की/अपनी/मेरी!
मंगलवार, 14 जुलाई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही निशाना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Exorbitantly high taxes on liquor have made good stuff 'out of reach' for poor people.
Need of the hour is a movement for reduction in prices of beer. If they can get it cheaper ,no body will die this way at least.
बड़ी बिडम्बना है !
बिलकुल सही.
गरीब की मौत सस्ती और अमीर की....
एक टिप्पणी भेजें