बुधवार, 30 सितंबर 2009
अथ श्री पीएचडी कथा! और क्या वाकई सबसे बड़ा रुपय्या!
आजकल, अपनी प्रसन्नता के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
१) बहुत खुश
२) सामान्यत: खुश
३) नाखुश
या फिर १ से १० के स्केल पर आप अपनी प्रसन्नता को कितने अंक देना चाहेंगे?
कुछ इसी तरह के सवाल पूछे जाते हैं subjective well being measure सर्वे में. मेरी भावी रीसर्च कुछ इसी तरह का रुख लेने वाली है. थोडा अर्थशास्त्रीय पहलू ये होगा की में वैश्वीकरण का प्रभाव लोगों की प्रसन्नता पर देखना चाहूंगा. Econometrics, जिसे data विश्लेषण का विज्ञान कहा जा सकता है, का इस्तेमाल भी किया जाएगा. जर्मनी से प्रोफ़ेसर एक्सेल द्रेहेर ने पीएचडी में मेरा सुपर्वाइज़र बनने के लिए हामी भरी है. अभी तो छात्रवृति के पापड भी बेलने हैं. अक्टूबर १३ को GRE की परीक्षा भी देनी है. थोडा समय मिलते ही अपनी रिसर्च की दिशा के बारे में और लिखूंगा. तब तक अमर्त्य सेन और जोसेफ स्तिग्लित्ज़ की इस रिपोर्ट को देखा जा सकता है जो फ्रांसीसी राष्ट्रपति सार्कोजी के आग्रह पर उन्होंने लिखी है.बड़े लोग कहते हैं के "और भी राहतें हैं पैसे की खनक के सिवा"
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4 टिप्पणियां:
Shubh kaamnaayen.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
gr8 ! wish u all the best.
All the Very Best...
तो कैसी चल्लई है आपकी शोध-यात्रा?
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