गुरुवार, 26 अगस्त 2010

शेक्स्पेअर "द उल्लू का पट्ठा"

तू पूछती है कैसे कोई नाम जुड़ सा जाता है जिंदगी से

वो रंग जिससे नज़र न हटे
वो खुशबू जो अब जिस्म से ही निकले
ऐसे ही तेरा नाम
मैं बार बार सुनना चाहूँ
अपनी ही ज़बान से

कैसे कोई नाम घुल सा जाता है ज़िन्दगी में

1 टिप्पणी:

Rahgeer ने कहा…

यार, मज़े के नाम पर शेक्‍सपीयर जैसे महान लेखक के साथ ऐसा भद्दा शब्‍द जोड़ना ठीक नहीं....