शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

बसंत

ये जो मौसम है
जिसे मेरे गाँव में बसंत ही कहते है शायद!
(जनवरी के बीच से शुरू होता हुआ,
फरवरी के आख़िर तक तो अभी है
शायद मार्च बीतते बीत ही जाएगा.)
जिसमें सर्दी को प्यार से विदा कर रही होती है गर्मी
फूल खिला के
कहती हुई के देखो! सामने खुला मैदान है
भागो!
कोशिश करो!
इस
पेडों से मिल कर और शरारती हुई
हवा को रोक कर कुछ बात करने की
मौज में है ये
पर किस्मत आजमाने में हर्ज नहीं!

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!!

मुनीश ( munish ) ने कहा…

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