सोमवार, 11 अगस्त 2008

एक ग़ज़ल सस्ती सी!

हम भी हो गए सस्ते शेरों के शैदाई,
और inspired हो के ये सस्ती गज़ल बनाई
(याद रखना मेरे भाई,
हमने अपना पुराना गीत छापने की प्रोमिस temporarily दी है भुलाई) -

शेर है मेरा सबसे सस्ता|
है लेकिन ये एकदम खस्ता||

इसकी ही है चर्चा हरसू|
गली-गली औ' रस्ता-रस्ता||

टूटा हैं यह कसता-कसता|
उजड़ गया है बसता-बसता||

उसकी किस्मत-मेरा क्या है|
निकला है वो फँसता-फँसता||

दुनिया क्यों है रोती रहती|
जग है फ़ानी-जोगी हंसता||

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