दिल्ली में लौटता सावन जम के बरस रहा है| तीन साल पहले बारिश के इसी मौसम में एक गीत लिखा था| नीरज और मेरे एक हमनाम ने छपने की प्रेरणा दी| गीत समर्पित है-बादलों और बावलों को-
छाए बदरा छाए आज
फिर भी ना आए सरताज|
तजि के सारे अपने काज
बैठी हूँ लिए हिये-साज|
छाए बदरा छाए आज
फिर भी ...|
कारी कोयल करती कूक
मेरे उर में उठे है हूक|
कैसी नैनों की ये भूख
बस बढ़ती ही जाए आज||
छाए बदरा छाए आज
फिर भी ...|
मेरी छोटी सी थी भूल
मैं चरणों की थारी धूल|
कब तक बीन्धेंगे शूल
बोलों गीतों की आवाज़
मेरे गीतों की आवाज़||
छाए बदरा छाए आज
फिर भी ...|
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