मंगलवार, 26 अगस्त 2008

फ़राज़ तुम्हें हर अशआर में जीना होगा-एक बेहतरीन शाइर और इंसान को श्रद्धांजलि|

अभी सिद्धेश्वर का पोस्ट कबाड़खाने में देखा| फ़राज़ नही रहे|

पाँच साल होने को आए हैं, साहित्य अकादेमी ने एक सेमीनार का आयोजन किया था| "कविता के मायने उनके लिए क्या है?" (या ऐसा ही कुछ) विषय पर बोलने और अपनी कविताएँ पढने हिन्दुस्तान की बहुत सी ज़बानों के कवि आए थे| हिन्दी में चंद्रकांत देवताले मुझे याद हैं| विशेष अतिथि थे- अहमद फ़राज़| गोपीचंद नारंग ने उनका परिचय दिया| और फिर जब "फ़राज़" बोलने के लिए उठे तो पता चला की वो "फ़राज़" क्यों थे| सभागार में बैठे हर आदमी का दिल उनकी मुट्ठी में था| तब एक सवाल ख़ुद से पूछा था- मेहदी हसन ने उनकी गज़लें गा कर ख़ुद कितना सुख लूटा होगा? सरल भाषा में दिल को छू लेने वाली बात कर जाना उनकी खासियत थी|

उस दिन मैं उनसे मिला नहीं| सेमीनार के बाद सब चाय के लिए सभागार से बाहर निकले| इतने नामचीन शाइर से मिलना तो दूर, घबरा के ये "कॉलेज का लौंडा" मुफ़्त की चाय भी न पी पाया|

ज़्यादा दिन नहीं लगे जब मैं लोगों से ख़ुद ही कहने लगा की मेरे favorite poet फ़राज़ हैं| सुबह यूनिवर्सिटी के मैदान के चक्कर काटते हुए यूँही गुनगुना बैठा था -

अभी तो बाद-ऐ-सबा में ठंडक बाकी हैं
अभी है दूर कहर थोड़ी दूर साथ चलो|

सोचा था कभी फ़राज़ से रूबरू हुआ तो माफ़ी मांग कर सुना दूँगा| वो इधर उस सेमीनार के बाद भी आए पर मैं ही कभी मिलने न जा पाया| ये हूक मुझे सालती रहेगी| मगर इस पोस्ट को पढ़ने वालों से बस एक दरख्वास्त करूंगा के एक बार अहमद फ़राज़ को नेट पर खोज लीजियेगा| मैंने तो सिर्फ़ उनका नाम लिया है| उनकी गजलें, नज़्मे, उनकी तस्वीरें, उनके विडीयो- चहुँ ओर हैं| वो अपने चाहने वालों के दिल में "फ़राज़" पर हैं| हमेशा रहेंगे|

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