मंगलवार, 19 अगस्त 2008

ये करें हिन्दी की सेवा, मुझे-तुझे मेवा ही मेवा!

हिन्दी में ब्लोगिंग शुरू करने का प्रोत्साहन मुझे इन्टरनेट पर फैले हिन्दी के विशाल साम्राज्य ने ही दिया था| इस ज्ञान-गंगा के एक अमूल्य मोती से आपको मिलाने का लोभ-संवरण नही कर पाया| साईट है- गीता-कविता| एक बार इस साईट में कूदे तो यकीं मानिये, फिर मन चाहेगा की इस साहित्यिक-धार्मिक-आध्यात्मिक-बौद्धिक सागर में ही डूबे रहें|

आपको इस साईट की और खींचने के लिए एक दाना और! साईट के रचनाकार- राजीव कृष्ण सक्सेना हिन्दी साहित्य की शान "धर्मवीर भारती जी" के भांजे हैं| हिन्दी के प्रति ऐसा समर्पण और प्रेम...कम लिखे को ज़्यादा समझें क्योंकि मेरा और कुछ कहना सूरज को दीप दिखाने के समान होगा| इतना ही कहूँगा की २४ केरेट सोना है, लपक लो|

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

विनय जी
आज ही देखते हैं ये ब्लॉग...
नीरज

विनय (Viney) ने कहा…

ज़रूर! और ये भी बताइएगा की कैसी लगी!